Apr 28, 2015

एक कवि की भूख

सुनो शेष
भूख लगने पर क्या करते हो तुम
उम्मीद से देखते हो बुक सेल्फ़ की ओर
स्कूल से घर लौटकर
कोई बच्चा
रसोई की ओर देखता हो जैसे

चल पड़ते होंगे ये सोचकर कि आज
कुछ लज़ीज़ रखा होगा भगोने में

या बचाकर भाभी की नज़रों से
चख लेते होंगे किताबों में छिपी
महबूब की पुरानी चिट्ठियां

या फिर मेज़ पर रखे
बासी दाल-चावल से अख़बार ठूंसते हो

भूख लगने पर क्या करते हो तुम

मीर की मिश्री चूस लेते हो
या फिर ग़ालिब का मुग़लई दीवान उठाते हो

मुझे तो भूख लगती है
तब मैं अक्सर
एक कहानी खाकर दो नज़्में पीकर सो जाता हूँ
मुझे कोलेस्ट्रोल फ्री कवितायें अच्छी लगती है।

-दामोदर व्यास
28 अप्रैल 2015

No comments:

Followers