Apr 23, 2015

एक किसान की मौत और नेता

किसानों की मौत पर
एक नेता
भीतर तक टूट गया

"जिस देश में
पेड़ों से लटककर
मर जाए अन्नदाता
वहाँ
मैं नहीं जी सकता"

पैनल डिस्कशन के दौरान
नेताजी द्वारा कही गयी
इस बात को
गंभीरता से लिया गया

एक चैनल ने
पीपली लाइव के नत्था
और नेताजी को
साथ-साथ दिखाया

दूसरे को फ़िक्र थी
नेताजी ने क्या खाया

नेताजी के बयान ने
नेताओं की चिंता बढ़ा दी
सभी पार्टियों ने
प्रवक्ताओं की
लाइन लगा दी

पहला प्रवक्ता:
ये विषय गंभीर है, सभी दलों को एक होना पड़ेगा।

दूसरा प्रवक्ता:
नेताजी अत्यंत संवेदनशील हैं।
हम उनकी भावनाओं का आदर करते हैं।

तीसरा प्रवक्ता:
नेताजी स्पष्ट करें। आख़िरकार वे क्या करेंगे?

चौथा प्रवक्ता:
ये मीडिया अटेंशन लेने का एक तरीक़ा है। हम निंदा करते हैं।

इधर
नेताजी की bp low होने लगी
पार्टी का दबाव बढ़ने लगा

"आप या तो पार्टी छोड़ें या फिर जीना।"

एक नेता के लिए
पार्टी ही जीवन है
जिस तरह
किसान के लिए
उसका खेत

खैर किसान तो
नेताजी भी थे
उनके रिकार्ड्स में
लखनऊ, नोएडा
और हिसार वाली ज़मीन को
कृषि भूमी बताया गया था

नेताजी को
विचार कौंध रहे थे
शायद किसान के साथ भी
ऐसा होता होगा
मरने से पहले

पहला विचार-
कौन कहता है किसान को मरना चाहिए? मैं भी तो किसान हूँ और मैंने ऋण भी लिया है।

दूसरा विचार-
किसान को नेता बन जाना चाहिए। हमारे खेतों में फ़सलें बर्बाद नहीं होती हैं।

तीसरा विचार-
किसान खेती करता है फिर फ़सल बर्बाद होती है और फिर वो सुसाइड कर लेता है। जैसे लड़की छोटे कपड़े पहनती है फिर बाहर निकलती है और उसका रैप हो जाता है।

बहरहाल
नेताजी संवेदनशील थे
उन्होंने
किसी भी विचार पर
विचार नहीं किया
और
कहीं चल पड़े
चिंताओं का पहाड़ लेकर

चार दिन बीत गए
नेताजी की कोई ख़बर नहीं
युवराज के लिए चिंतित लोग
अब नेताजी को ढूंढने लगे

घरवाले खामोश थे
पार्टी अनजान थी
मीडिया परेशान थी

विपक्ष ने जांच की मांग की
पार्टी ने सभा रखी
और मीडिया ने समीक्षा...

नेताजी संवेदनशील थे
उन्हें
अपने बयान के बाद
ज़मीनें बेचनी पड़ी
विदेश में सेटल होने के लिए

ऐसी जगह
जहाँ कोई किसान
पेड़ों से लटककर
नहीं मरता

नेताजी एक किसान थे
और
भारत एक कृषिप्रधान देश...

-23 अप्रैल, 2015
©Damodar vyas

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