हर रोज़ ढूंढते हैं कि क्या आज नया है
हर एक उनकी बात का अंदाज़ नया है
जाने क्यों उचटा है मन, अब देश राग से
बंशी की जगह बज रहा, कोई साज नया है
न जाने कब किधर से, वो वार करेगा
हर आदमी का तरीक़ा-ए-आगाज़ नया है
किरदार जल चुके हैं, कहानी के मेरे दोस्त
धुंए से जो है उठ रहा, वो राज़ नया है
वो चाहता है भूख का, शिकार बनो तुम
फ़िर झट से ले उड़ेगा, बाज़ नया है
शहरों में रहगुज़र की, तरक़ीब क्या है दोस्त
जहाँ झोपड़े थे पहले, वहां ताज नया है
उन प्यार भरी चिट्ठियों की ख़ुशबू थी अलग
मोबाइल पर ही मिलने का, अब अंदाज़ नया है
©दामोदर व्यास
11th April, 2015
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