Sep 16, 2014

भँवरे

ये काले कलूटे डरावने से भंवरे

अकसर बगीचों में

नज़र आयेंगे

फूलों पर मंडराते हुए


बरसों से वैज्ञानिकों ने

फूलों और भँवरे के इस मिलन को

विज्ञान से जोड़ दिया

चित्रकारों ने तस्वीरें बना दी

मंडराते हुए भँवरे की


जब भी कभी

भंवरों ने

हमारे घर के किसी कोने में

अपने घर बनाये

तब तुड़वा दिए हमने उनके मिट्टी के घर

यह कहकर कि

ऐसा होना अपशगुन होता है


हमने अकसर

अख़बार से झटककर मार डाला है

इन काले कलूटे डरावने से भंवरों को

कह दिया कि शोर बहुत करता है


#damukipoem

Jul 30, 2014

बरसात

मुझमें फूट रही थी एक कविता
स्टेशन से आते-जाते वक़्त
अनजाने में
जाने कैसे बीज गड़ गया था

बूट पोलिश के जरिये
दो वक़्त की रोटी जुटाने वाले
उस बच्चे को
कल रात
प्लेटफार्म पर रोता देखकर
दिल कांपने लगा
उसके आंसू
उतर गए थे भीतर तक

सुबह होने तक
कविता फूट कर निकल चुकी थी
सिर उठाकर
पौधा, आकाश से पूछ रहा था-
बरसात में लोग
चमड़े के जूते क्यों नहीं पहनते हैं।
#damukipoem
©Damodar

Jul 18, 2014

सरकारी अस्पताल

वो खामोश खड़ा है
पुराने बरगद की तरह
शहर की हाई राइज इमारतों के बीच
उस बरगद की छाँव में
हजारों लोगों ने दिनभर
अपनी थकान मिटाई है

टूटती टहनियाँ, सूखते पत्ते
तमाम परेशानियों के बावजूद
उसने कितनों को लू से बचाया
कितनों को गोद में सुलाया

उस बूढ़े पेड़ को देखकर
सरकारी अस्पताल याद आता है
कितने ही ज़रुरतमंदों को पनाह दी जिसने
शाम को अपनी ही मंद रोशनी में
जो थककर सो गया
ज़रूरतों के लिए बना था
ज़रुरतमंदों का हो गया

-16/7/2014
From: J J
#damukipoem

ये कविता नहीं है

हां मैंने नहीं पढ़ी है
साहित्यों की मोटी-मोटी पोथियाँ
अपने बर्ताव के कारण
मुझे कॉलेज से निकाला गया

मुझे बेमानी लगती थी
जायसी की मोटी किताब
और प्रयोजन मूलक हिंदी

सातवीं कक्षा के चारण कवि
और तीसरी कक्षा के ईदगाह ने
मुझे बदल दिया था

मैं नहीं पढ़ सका राग दरबारी
क्योंकि परसाई जी के आगे सोचना
बस में नहीं था मेरे

मैं नहीं जाता हूँ काव्य सभाओं में
जहाँ हर एक कवि
सिर्फ सुनाने की ताक में रहता है

मेरी रचनाओं में नीरसता है
क्योंकि किसी रस को पीया नहीं मैंने
मैं खुद से बाहर होकर नहीं लिखता
क्योंकि आडम्बर से जीया नहीं मैंने

मैं कवि नहीं हूँ
मैं सिर्फ अपनी बात लिखता हूँ
#damukipoem

Jul 14, 2014

Age of memories

अब बंद कमरों में यादें जवां नहीं होती
एक वक़्त था
जब हुनरमंद हाथों से
रिश्ते गुजरते थे
लाल रोशनी में
घंटों लटकी रहती थी मुस्कानें

अब सब कुछ तो सेल्फी हो गया है
इंतजार नहीं करना पड़ता अब किसी का
यादों को क्लिक कर, जेब में डाल दिया जाता है
अब न कोई एल्बम बनता है
और न ही घर की मेज़ पर यादें रखी जाती है

न जाने कितनी बातें
बेवजह अपलोड-डाउनलोड होती रहती है

यादों की उम्र छोटी हो गयी है यार
छोटी सी बात पर
सब कुछ डिलीट हो जाता है
न फाड़ने झंझट
और न ही जलाने वाला अहसास

अब बंद कमरों में यादें जवां नहीं होती
अगले क्लिक तक रिश्तों की उम्र होती है
-15/7/2014

Jan 5, 2014

नया साल

कल न जाने कौनसा कमाल हो जायेगा,
कलेंडर बदलेगा, नया साल हो जायेगा

तुम्हें उम्मीद है कि दुनिया बदल जायेगी
मुझसे ज़िक्र न करो, बवाल हो जायेगा

मेरी सोच में तो वक़्त चेहरे बदलता है
कभी राख है, कभी गुलाल हो जायेगा

मेरे नसीब में सच बोलना ही लिखा है
इश्क मत कर बेटा, बदहाल हो जायेगा

फिर भी दुआ करता हूँ, तुम खुश रहना
तुम्हारा 2014 भी निहाल हो जायेगा

-दामोदर व्यास

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