कभी दामाद डुबोता है
कभी भांजा फसाता है
करप्शन के कीचड़ में
आदमी यूं समाता है
ये इंसा बेच भी दें
देश को गर फूटी कोड़ी में
अपना क्या बिगड़ता है
तेरे घर से क्या जाता है
बहुत कुछ बोलकर
खामोश होना अपनी आदत है
इसी आदत का हर एक लालची
फायदा उठाता है
कभी भांजा फसाता है
करप्शन के कीचड़ में
आदमी यूं समाता है
ये इंसा बेच भी दें
देश को गर फूटी कोड़ी में
अपना क्या बिगड़ता है
तेरे घर से क्या जाता है
बहुत कुछ बोलकर
खामोश होना अपनी आदत है
इसी आदत का हर एक लालची
फायदा उठाता है
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