हर एक बात की अपनी एक शक्ल होती हैं. इन शक्लों को अलग-अलग नज़रें अपने-अपने ढंग से देखती हैं. इसी तरह मेरा भी सोच को जुबान देने का अपना एक ढंग हैं जिसका नाम है नज़रिया.
Mar 9, 2013
माँ
कभी देखे नहीं तेरी हथेली के छाले देखता तो समझ भी जाता
आज पता चला क्यों तुम गालों पे नहीं सर पे हाथ रखती हो ------ माँ मुट्ठी में दर्द को छुपा लेती है आंसू पोंछती है, मेरी खातिर मुस्कुरा लेती है
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