कैसे कर लेते हो भईया
थोड़े से वेतन में महीने भर गुजारा
भीड़ भरी लोकल में चर्चगेट तक की यात्रा
ऑफ़िस की खींचतान के बीच थोड़ा सा मजाक
बरसों पुराने शूट में दोस्तों की शादी अटेंड करना
बेटे की ज़िद को कैसे भी पूरा करना
पटाखों की गूँज में फोन पर बात कर लेना
रात को एक बजे सोना, सुबह छह बजे उठना
तुम कहीं आम मुम्बईकर तो नहीं....!
हर एक बात की अपनी एक शक्ल होती हैं. इन शक्लों को अलग-अलग नज़रें अपने-अपने ढंग से देखती हैं. इसी तरह मेरा भी सोच को जुबान देने का अपना एक ढंग हैं जिसका नाम है नज़रिया.
Oct 5, 2012
मुम्बईकर
किश्तों में ही सही
अब ना तो वो पूरा कहते हैं
अब ना ही हम पूरा सुनते हैं
खैर बात तो होती है
चाहे किश्तों में ही सही
वो ज़रा सा देख लेते हैं
हम थोड़ा झांक लेते है
खैरं मुलाक़ात तो होती है
चाहे किश्तों में ही सही
अब ना ही हम पूरा सुनते हैं
खैर बात तो होती है
चाहे किश्तों में ही सही
वो ज़रा सा देख लेते हैं
हम थोड़ा झांक लेते है
खैरं मुलाक़ात तो होती है
चाहे किश्तों में ही सही
हम तकिया फेंक देते हैं
वो चद्दर खींच लेते हैं
खैर पूरी रात तो होती है
चाहे किश्तों में ही सही
हम छतरी तान देते है
वो थोड़ा भीग जाते हैं
खैर बरसात तो होती है
चाहे किश्तों में ही सही
वो थोड़ा रो भी लेते हैं
हम थोड़ा हंस भी देते हैं
जिंदगी साथ तो होती है
चाहे किश्तों में ही सही..
-दामोदर व्यास
4, अक्टूबर 2012, 2AM
वो चद्दर खींच लेते हैं
खैर पूरी रात तो होती है
चाहे किश्तों में ही सही
हम छतरी तान देते है
वो थोड़ा भीग जाते हैं
खैर बरसात तो होती है
चाहे किश्तों में ही सही
वो थोड़ा रो भी लेते हैं
हम थोड़ा हंस भी देते हैं
जिंदगी साथ तो होती है
चाहे किश्तों में ही सही..
-दामोदर व्यास
4, अक्टूबर 2012, 2AM
Oct 3, 2012
अरे ये कहाँ आ गए
अरे ये कहाँ आ गए
ऐसी जगह तो तस्वीरों में देखी है
आँखों को आदत नहीं है
ये हरियाली देखने की
यहाँ तो पी पो भी नहीं है
यहाँ की आदत हमें नहीं है
ऐसी जगह तो तस्वीरों में देखी है
आँखों को आदत नहीं है
ये हरियाली देखने की
यहाँ तो पी पो भी नहीं है
यहाँ की आदत हमें नहीं है
हमारी सांसें तो
सल्फर डाई ऑक्साइड से चलती है
यहाँ तो एक दिन एक सप्ताह लगता है
चलो वही चले
जहाँ अट्ठन्नी जैसे
दिन खर्च हो जाता है.
यहाँ और रहा तो
ये गाँव शहर का
कोंटेक्ट नंबर मांग लेगा...
-दामोदर व्यास
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