Sep 23, 2011

बात खुद-ब-खुद बन जाएगी

शाम होने दो ज़रा
बात खुद-ब-खुद बन जाएगी....
जब आसमान ओढ़ लेगा
हल्की लाल चादर,
जब सूरज प्याली में डूब जाएगा
समंदर की,
जब हवाओं में नशा उतरने लगेगा,
बात खुद-ब-खुद बन जाएगी....
इन्हीं पलों में दुनिया मुस्कुराती हैं
दफ़्तर से घर जाने की ख़ुशी में,
अपनों के घर आने की ख़ुशी में..
होंसले सारे टूटने लगते हैं,
रूठने- मनाने के..
तुम भी मुस्कुरा देना
बात खुद-ब-खुद बन जाएगी
क्योंकि
शाम की दहलीज पर,
गुस्से की एंट्री नहीं होती हैं...
23-Sep-2011, 00:58 AM

Sep 16, 2011

अलविदा नीली जर्सी के सन्यासी


बचपन से ही क्रिकेट खेलने का शौक है. गाँव में स्कूल की छुट्टी के बाद जब भी गेंद बल्ले उठाकर खुद को सचिन, कुंबले, जडेजा, अजहर, कपिल और न जाने कितने ही देसी विदेशी क्रिकेटरों के नाम का कोपीराईट लेकर क्रिकेट खेलने उतर जाते थे. मैं तब भी द्रविड़ का नाम लेकर बल्लेबाजी करता था. एक कारण ये भी था की उस वक़्त द्रविड़ बनने के नाम को लेकर मेरे बचपन के दोस्तों ने कभी झगड़ा नहीं किया.  १९९२ के इंग्लैण्ड दौरे में द्रविड़ और गांगुली ने एक साथ इंटरनेशनल करियर की शुरुआत की. गांगुली अपने लम्बे छक्कों से मशहूर हो गए, लेकिन द्रविड़ को उतना नाम नहीं मिला. चौराहों पर भी गांगुली और सचिन की ही बातें होती थी. और मैंने घर की अलमारी में सचिन के साथ द्रविड़ की फोटो लगा दी. पता नहीं द्रविड़ में ऐसी कौनसी बात थी जिसने मुझे उसका फेन बना दिया. 
१९९९ के वर्ल्ड कप में गांगुली ने १८३ रनों की शानदार पारी खेली. सचिन तेंदुलकर ने भी यादगार शतक झड़ा और ख़ास बात यह थी की इन दोनों पारियों में द्रविड़ का शतकीय सहयोग रहा. मैं आज टेस्ट मैचों की बात नहीं करूँगा. क्योंकि टेस्ट क्रिकेट में मेरी नज़रों में राहुल द्रविड़ से बड़ा कोई भी नाम नहीं है. सचिन और लारा भी दुसरे नंबर पर रहेंगे.
सौरव की कप्तानी में द्रविड़ को विकेट कीपर की भूमिका सौंपी गयी, जिसे उन्होंने ख़ामोशी से बड़े बेहतरीन तरीके से निभाया. मुझे याद हें की द्रविड़ ने जब शादी की थी तब कितनी ही लड़कियों के दिल टूटने की खबरे अख़बारों में छपी थी.
द्रविड़ क्रिकेटर है ये सब जानते है, लेकिन उन्होंने अपनी बेहतरीन क्रिकेट से ज्यादा अपने व्यवहार से क्रिकेट जगत में लोगों को अपना मुरीद बनाया है. मैं उन्हें क्रिकेट का विवेकानंद कहूँगा जिन्होंने अपने जीवन को किसी सन्यासी से कमतर नहीं जिया. इंडियन क्रिकेट को अगर किसी परिवार की तरह देखूं तो द्रविड़ हमेशा मुझे माँ की भूमिका में नज़र आये. उन्होंने क्रिकेट की पिच पर हर मुश्किल का सामना मुस्कुराते हुए किया. वन डे क्रिकेट में कब दस हजारी हो गए पता ही नहीं चला.
इंग्लैंड के खिलाफ अपने एक मात्र इंटरनेशनल टी-२० मैच में लगातार तीन छक्के मारकर उन्होंने ख़ामोशी में सारे जवाब दे दिए. फिटनेस कभी द्रविड़ के आड़े नहीं आई. वो चाहते तो पांच साल और वन डे क्रिकेट खेल सकते थे. लेकिन उनको हमेशा गरज पड़ने पर इस्तेमाल किया गया, जिसका मलाल द्रविड़ से ज्यादा उनके मुझ जैसे पागल फेन को है.
जिस दिन द्रविड़ टेस्ट क्रिकेट से सन्यास लेंगे उस दिन में मैच चाहते हुए भी देख नहीं सकूँगा. उन्होंने क्रिकेट खेलते हुए जीवन को किस तरह से जिया जाये ऐसा संदेश मुझे दिया. मेरी नज़रो में द्रविड़ सुबह के आकाश में चमकने वाला ध्रुव तारा है जो हमेशा चमकता रहेगा. आई लव यु द्रविड़.
 

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