Jan 2, 2011

वक़्त ने एक और पड़ाव तय कर लिया

नाप तौल कर दौड़ाने वाले वक़्त ने अपना एक और पड़ाव तय कर लिया लेकिन रुका नही. शायद कभी रुकेगा भी नहीं. कभी सोचता हूं की देने वाले ने चुटकी भर ज़िंदगी दी हैं. इस अदनी सी ज़िंदगी ने ढ़ेर सारे सपने सजा रखे हैं. ज़रूरते सवाल करती हैं कि क्या इतनी सी ज़िंदगी काफी हैं. दिल आँखे दिखाकर कहता हैं कि ज़रूरतों को मूंह मत लगाओ, वर्ना पछताओगे. साल २०१० शायद मेरी ज़िंदगी में अब तक का सबसे अहम साल था. शादी से पहले एक बिंदास पंछी था लेकिन शादी के बाद जिम्मेदारियों ने सबक सिखाना शुरू कर दिया. जिम्मेदारियों कहा कि तुमने अपनी ज़रूरतों पर ताला लगा दिया कोई बात नहीं मगर उनका क्या जिन्हें तुमसे उम्मीदें हैं. वैसे २८ पड़ाव पार करने के बात यह बात भी अच्छी तरह से सीख ली कि आसान कुछ भी नहीं हैं. वक़्त और ज़रूरतों के मुताबिक खुद को ढाल लेना ही ज़िंदगी हैं. कोई चीज़ अगर आसान है तो उसे आदत में मत उतारो और कोई चीज़ अगर मुश्किल है तो उससे घबराओ मत.

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