नूर- ऐ- इलाही, राम दुहाई
कैसे भी फरियाद करें
मंदिर उसका, मस्जिद उसकी
जहां चाहे उसको याद करें
बंज़र रिश्तो का क्या होगा
इसी सोच में सदियाँ बीत गयी
पानी उसका, धरती उसकी
वो चाहे जब बरसात करें
लकीरें खेल दिखाती हैं
कभी हाथों में, कभी सरहद पर
मिट्टी उसकी, किस्मत उसकी
वो चाहे जो हालात करें
मुझे उर्दू समझ में आती हैं
तू भी तो हिंदी जनता हैं
ये घर उसका, यह छत उसकी
चलो आओ मिलकर बात करें
एक दिल के दो टुकड़े करके
इसे हिंद कहा, उसे पाक कहा
सीना उसका, धड़कन उसकी
हम सबको जिंदाबाद करें....
दामोदर व्यास
२९। जनवरी। २०१०
मुंबई
कैसे भी फरियाद करें
मंदिर उसका, मस्जिद उसकी
जहां चाहे उसको याद करें
बंज़र रिश्तो का क्या होगा
इसी सोच में सदियाँ बीत गयी
पानी उसका, धरती उसकी
वो चाहे जब बरसात करें
लकीरें खेल दिखाती हैं
कभी हाथों में, कभी सरहद पर
मिट्टी उसकी, किस्मत उसकी
वो चाहे जो हालात करें
मुझे उर्दू समझ में आती हैं
तू भी तो हिंदी जनता हैं
ये घर उसका, यह छत उसकी
चलो आओ मिलकर बात करें
एक दिल के दो टुकड़े करके
इसे हिंद कहा, उसे पाक कहा
सीना उसका, धड़कन उसकी
हम सबको जिंदाबाद करें....
दामोदर व्यास
२९। जनवरी। २०१०
मुंबई
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