Sep 26, 2010

जीवन चक्र

रोज़ शाम समंदर की हलक से
उतरता हैं एक सूरज

रोज़ रात तारों की शक्ल में
बिखर कर नज़र आता हैं..
ये तारे हाथ पकड़कर
एक चाँद बनाते हैं
ये चाँद बढ़ते-घटते
अमावस की कब्र में दफ्न हो जाता हैं
एक दिन...

ज़िन्दगी भी इसी तरहा
उतर जाएगी वक़्त के हलक से...

और नाम बदलकर फिर पैदा होगी
किसी और क्षितिज पर..


दामोदर व्यास 

Jul 10, 2010

"ऑक्टोपस पॉल का साक्षात्कार"

रवीवार का दिन वैसे भी सुस्ताने का दिन होता हैं, उस दिन बिस्तर पर पड़े-पड़े मैं न्यूज़ चैनलों को बदल बदल कर देख रहा था. एक चैनल पर दो विंडो में कुछ अजीब सा नज़ारा था, एक विंडो में एंकर थी और दूसरे पर कोई अजीब सा जानवर दिखाया जा रहा था. मेरी निगाह उसी चैनल पर टिक गयी.
एंकर ने पूछा "पॉल आपका डेली रूटीन क्या हैं ज़रा हमारे दर्शको को बतायेगे..?"    
    
एक मिनट के लिए तो मैं पॉल नाम के इस शख्स को स्क्रीन पर ढूंढ रहा था, फिर मुझे याद आया अरे! ये तो वही महान ऑक्टोपस पॉल हैं जिन्होंने FIFA World Cup के नतीजो में अहम् भूमिका निभाई थी! बड़ा Interesting interview हो रहा था. मुझे पॉल के उत्तर की प्रतीक्षा थी. अब कैमरा किसी इंसान पर केन्द्रित था शायद वो पॉल का प्रवक्ता था. मेरे दिमाग में सीधे एक Question आया. इस प्रवक्ता की तनख्वाह कितनी होगी? पॉल इसे चेक देता होगा या फिर केश? चेक देता होगा तो हस्ताक्षर कैसे करता होगा? 
      
प्रवक्ता "जी पॉल सर को साइनस का problem हैं, हर वक़्त पानी में रहने की वजह से, इसलिए सुबह-सुबह कपाल- भाति करने के बाद TV पर २ घंटे तक सारी International खबरे देखते हैं. आपको बता दूँ की पॉल सर शुद्ध शाकाहारी हैं, नाश्ते में इन्हें हमेशा समुद्री घास का ज्यूस लेना पसंद करते हैं ! फिश टैंक का पानी बदलने के बाद पॉल सर को ऑफिस ले जाया जाता हैं "

एंकर रोकते हुए "ऑक्टोपस पॉल travel कैसे करते हैं, कोई सुरक्षा के ख़ास इल्तेज़मात ?"


ये कैसा सवाल हैं खैर हिंदी न्यूज़ चैनल का तो यही सवाल होता हैं.

प्रवक्ता "जी हमारी सरकार ने पॉल सर को ZED Security दी हैं. वैसे कभी कभी इसकी वजह से पॉल सर को Privacy नहीं मिल पाती हैं लेकिन क्या करे सुरक्षा का सवाल हैं"

स्क्रीन पर नीचे टिकर चल रहा था. "दंतेवाडा में एक और नक्सली हमला इस बार स्थानीय लोग बने निशाना, 60 की मौत". ये ब्रेकिंग न्यूज़ थी लेकिन ऑक्टोपस पॉल की TRP शायद ज्यादा थी, Interview जारी था. मैंने साचो ब्रेक के दौरान चाय बनाऊंगा लेकिन 8 मिनट से तो एक भी ब्रेक नहीं हुआ. 

 एंकर "बोलीवुड में से अगर आपको कटरीना और करीना में से किसी एक को चुनना हो तो आप किसे चुनेंगे?"

फिश टैंक में पॉल के सामने कटरीना और करीना की तस्वीरे उतारी जा रही थी. बड़ा बेहूदा सवाल था लेकिन पॉल की पसंद जानने के लिए मैं भी बेकरार था. अब पॉल साहब किस पर बैठेंगे?  ऑक्टोपस पॉल एक फिश टैंक में बीचो बीच रखी कटरीना और करीना की तस्वीरो की तरफ तैरने लगे. मेरे ख्याल से शायद उनकी पसंद  कटरीना होंगी, लेकिन करीना भी शुद्ध शाकाहारी हैं शायद पॉल साहब करीना को पसंद कर ले.

       लेकिन दृश्य कुछ अलग था. पॉल  बाबा की चार भुजाये कटरीना पर थी और चार भुजाये करीना पर. मैं समझ गया, ऑक्टोपस एक दिल फेंक किस्म का प्राणी होता हैं.शायद कल के अखबारों की सुर्ख़ियों होगी "करीना ने पॉल के लिए सैफ को छोड़ा" या फिर "कटरीना भी चाहती हैं पॉल को". एंकर मुस्कुरा रही थी, पॉल के प्रवक्ता भी.एंकर के बेहुदा सवालो की वजह से मुझे चैनल बदलना पड़ा. दुसरे न्यूज़ चैनल पर भी पॉल ही थे...

  आइये अब आपको दिखाते हैं ऑक्टोपस पॉल से हुए हमारे संवाददाता दीपक की बातचीत के कुछ ख़ास अंश. उधर दीपक हँसते हुए  "मिस्टर फ्रँकलिन (पॉल के प्रवक्ता) क्या पॉल को वाकई जर्मन नागरीको से खतरा हैं, जिस तरहा फुटबाल सेमी फाइनल्स में जर्मन टीम के बाहर हो जाने के बाद खबरे आ रही थी?"

सवाल अच्छा था. मैं सोच रहा था की पॉल जैसे जानवर को भी सच बोलने की सजा भुगतनी पड़ रही हैं तो फिर हम किस खेत की मुली हैं. ऑक्टोपस पॉल दुब्बक कर फिश टैंक के कौने में चला गया था. इसी बीच एक ब्रेकिंग न्यूज़ आ रही थी. कुर्ला का सीरियल किलर पकड़ा गया ज्यादा जानकारी के लिए टेलेफोन पर मौजूद हैं हमारे संवाददाता मयंक. मोबाईल के इस दौर में मयंक अभी तक टेलेफोन से ही बात कर रहा था.

  मेरे मन में भी कई सवाल कोंध रहे थे जो में पॉल से पूछना चाहता था. मसलन महंगाई का मुद्दा,  2011क्रिकेट विश्वकप विजेता कौन होगा? NDA और UPA में से कम भ्रष्ट सरकार कौनसी रहेगी? बिहार चुनावो का नतीजा क्या होगा? भारत-पाक रिश्ते सुधरेंगे या नहीं? आरक्षण, गरीबी, Honour killing और पता नहीं कितनी सारी बातें. दिल में एक बात और भी हैं जो शायद में कभी पॉल से पूछ पाऊं. "हिंदी न्यूज़ चैनल का कंटेंट बदलेगा या नहीं?"

    मुझे मेरे दिल्ली Assignment से Call आया. वर्सोवा में और एक मॉडल ने सुसाइड कर लिया हैं एक बार ज़रा check कर लो. मेरा रवीवार मॉडल के भेंट चढ़ गया था. 

  


   

May 8, 2010

एक सड़क ज़िन्दगी की...


इन्ही सड़कों से निकलती हैं, वो मंजिल वाली गली,
जिसकी तलाश मे हैं... मैं, तुम, हम सब..

यहाँ पर भीड़ भी हैं, ये सड़कें वीरान भी हैं
पुराने खंडर हैं कहीं तो कहीं नए मकान भी हैं
बस आँखे खुली रखना, क्योंकि...
इन्ही सड़कों से निकलती हैं, वो मंज़िल वाली गली

यहाँ दुकानें मिलेंगी तुम्हे, जो तकदीर बेचती हैं
कभी खुशियाँ बेचती हैं, कभी ज़मीर बेचती हैं

बस आँखे खुली रखना, क्योंकि...
इन्ही सड़कों से निकलती हैं, वो मंज़िल वाली गली

कई किरदार नज़र आयेंगे तुम्हें, नकाबपोश-बेनकाब
ठग लिए जाओगे, संभालना जनाब
बस आँखे खुली रखना, क्योंकि...
इन्ही सड़कों से निकलती हैं, वो मंज़िल वाली गली

दामोदर व्यास
८ मई २०१०
मुंबई  




Apr 24, 2010

अंतराल.....


अब ज़िन्दगी में भी, अंतराल होने लगे है..

योग के साथ, वो मुझे जगाएगी..
ब्रेक फास्ट न्यूज़ में, चाय पिलाएगी..
"जायका इंडिया का" के वक़्त, लंच बनेगा..
दोपहर की "शान्ति" में, बच्चे स्कूल से लौटेंगे..
"अलिफ़-लैला" के वक़्त, दरवाजा खुलेगा..
"बालिका-वधु" आएगी, तब खाना बनाएगी..

"कहानी घर घर की" के वक़्त, बच्चे सो जायेंगे..
"दिल मिल गए" के बाद, हम बेडरूम में जायेंगे..
"दादीसा" की कुछ बातें होगी

उसके बाद.... आदतन वो कहेगी..

"टीवी ऑफ कर दो, सुबह जल्दी उठाना है"

Mar 27, 2010

खोता बचपन

 
उठाने दो कूंची,
इसे आसमान में रंग भरने दो
इस ग़ज़ब से बचपन को
कोई उड़ान भरने दो..

काँच की गोलियां ठोकने दो,
इसे पानी पर छप्प-छप्प करने दो,
इस ग़ज़ब से बचपन को
कोई उड़ान भरने दो...

फाड़ने दो किताबो से पन्ने,
एक कल्पना उड़ेगी
या एक कश्ती बनेगी
दीवारों पर कलम चलेगी
तो कोई सूरत भी बनेगी..

ज़िन्दगी की तंग गलियों से,
इन्हें हँसते-हँसते गुजरने दो
इस ग़ज़ब से बचपन को
कोई उड़ान भरने दो....
 
थैलों के बोझ तले,
ये फुलवारियां क्यों दब गयी...
उम्मीदों के हथौड़े पड़ने से,
ये मुस्काने क्यों छिटक गयी
इन नन्हे-नन्हे तारों को,
रात का आँचल भरने दो
इस ग़ज़ब से बचपन को,
कोई उड़ान भरने दो...

इक्तेफाकन उस रोज़


इक्तेफाकन उस रोज़
ठण्ड बढ़ गयी थी..
इक्तेफाकन तुम भी
दुपट्टे में लिपट कर
घर से चली थी...

हुआ यूँ था,
की कुछ रोज़ पहले,
स्कूल में तुम नयी-नयी आई थी...

फरवरी की सर्दी,
ओर दुपट्टे वाली शबनम..
खूब चर्चे हुए थे,
क्लास रूम की मेज़ पे बैठकर...
सब तेरी आँखों का कमाल था..
पता नहीं गुलाबी चेहरे के दीदार में
कितने पन्नो पर तेरी शक्ल बनी होगी,
पता नहीं...!!!

सर्द हवाए तुझे छुकर,
मुझ तक आती,
तेरे केश में लगे... 
आंवले की खुशबू से महक उठता,
मैं भी और क्लास भी...

चलते-चलते,
इक्तेफाकन तेरा दुपट्टा छिटक गया..
गुलाब के पौधे में अटक गया..
 
इक्तेफाकन उस रोज़,
थोड़ी धुप हो रही थी..
इक्तेफाकन शबनम,
मुझे देख रही थी...

इक्तेफाकन फरवरी थी..
इक्तेफाकन तरीक भी 14 थी..

इफ्तेफाकन दुपट्टे में उलझकर,
गुलाब टुटा था उस वक़्त...

इक्तेफाकन मेरी ओर गिर पड़ा था..
इक्तेफाकन मैं सामने खड़ा था..
 
बस इक्तेफाकन प्यार हो गया था.....

आजकल



क्यों आजकल देर से नींद आती हैं...
क्यों अजीब बातों पर वो मुस्कुराती हैं...
आजकल वो दुआए भी करने लगी हैं...
कुछ कह दो तो शर्माती हैं...
पता है, उसे यकीन नहीं होता...
की शायद उसे प्यार हुआ हैं....

कहने को तो घंटो लाइब्ररी में रहती हैं...
मगर किताबें उलटी पकड़ कर, जाने कौनसा सबक याद कराती होगी...
कॉफ़ी का शरबत हो जाता हैं..
फिर भी फूँक मारती रहती हैं..
कोई कितना रोके, कितना टोके...
उलझी रहती हैं...
पता हैं, उसे यकीन नहीं होता...
की शायद उसे प्यार हुआ हैं...

चलते-चलते बच्चो से शरारत करना...
लम्बी आहे भरना... जुल्फों से हरकत करना..
पीछे मुड़ कर, मुस्कुराकर धीरे से बाय कहना..
रोमांटिक नगमों की धुनों पर, सुर से सुर मिलाना...
कोई कितना रोके, कितना टोके...
सुनती ही नहीं हैं..
पता हैं, उसे यकीन नहीं होता हैं..
की शायद उसे प्यार हुआ हैं...

एक मैं हूँ की उसे देखता रहता हूँ..
कुछ लिख कर, कागजों को, पानी में फेंकता रहता हूँ...
आजकल सूरज से दिन नहीं निकलता हैं मेरा..
घंटो नाखुनो को, दांतों से, कुरेदता रहता हूँ...
कोई कितना रोके, कितना टोके..
मुझे कुछ पता नहीं..

पता हैं, उसे यकीन नहीं होता हैं...
की शायद मुझे प्यार हुआ हैं.....

इंसान

 

कांटो पर चलाना काम मेरा,
धरती की गोद में सोता हूँ,
मैं तो दीवाना हूँ यारों,
बस अपनी मौज में रहता हूँ ...

रिश्ते-नातों में उलझा नही,
पूरी दुनिया से मेरा नाता हैं,
सब लगते मुझको अपने से,
मेरा मज़हब यही सिखाता हैं,  
संग रहने से क्या होगा,
मैं सबके दिलो में रहता हूँ
मैं तो दीवाना हूँ यारो,
बस अपनी मौज में रहता हूँ...

कभी उड़ता हूँ बादल बनकर,
कभी बूंदों में ढल जाता हूँ
ग़मों का साया जहाँ भी हों,
वहाँ खुशियाँ बनकर जाता हूँ..
छोटी-छोटी बातों में ,
कभी हँसता हूँ, कभी रोता हूँ..
मैं तो दीवाना हूँ यारो,
बस अपनी  मौज में रहता हूँ..

मुझसे न पूछो नाम मेरा,
सब दिल वाला मुझको कहते हे,
पेड़-पौधे, नदिया-बादल,
सब साथ में मेरे रहते हैं..
धरती को माँ कहने वाला,
अब बेटा मैं इकलौता हूँ..
मैं तो दीवाना हूँ यारो,
बस अपनी मौज में रहता हूँ....

Mar 16, 2010

रिश्ते..


नूर- ऐ- इलाही, राम दुहाई
कैसे भी फरियाद करें
मंदिर उसका, मस्जिद उसकी
जहां चाहे उसको याद करें


बंज़र रिश्तो का क्या होगा
इसी सोच में सदियाँ बीत गयी
पानी उसका, धरती उसकी
वो चाहे जब बरसात करें


लकीरें खेल दिखाती हैं
कभी हाथों में, कभी सरहद पर
मिट्टी उसकी, किस्मत उसकी
वो चाहे जो हालात करें


मुझे उर्दू समझ में आती हैं
तू भी तो हिंदी जनता हैं
ये घर उसका, यह छत उसकी
चलो आओ मिलकर बात करें


एक दिल के दो टुकड़े करके
इसे हिंद कहा, उसे पाक कहा
सीना उसका, धड़कन उसकी
हम सबको जिंदाबाद करें....


दामोदर व्यास
२९। जनवरी। २०१०
मुंबई

Jan 1, 2010

इस बरस


बीती बातें भूल जाएँ, इस बरस,
बच्चा-बच्चा मुस्कुरायें, इस बरस,
ना किसी का घर जलें और ना बहें
बस, रोशनी ही नज़र आयें, इस बरस

भारत ही भारत नाम हो, इस दुनिया में,
सबके मन में राम हो, इस दुनिया में
सीता का ना ही हरण हो - वनवास हो,
"आतंक की लंका" जीत जाये, इस बरस

"लता" की आवाज़ हम सुनते रहें,
"ओबामा" जैसी क्रांति को, चुनते रहें,
"जैक्सन" जैसी मौज, फिरसे आएगी,
"सचिन" फिर सरताज होगा, इस बरस

बच्चो के, कंधो से हो थोडा, बोझ कम,
नाचे-गाए-हँसते जाए, हर कदम,
ये आने वाला कल हैं, इतना जान लो,
इन्हें भूल से भी, ना रुलाये, इस बरस

दिल से दिल की बात को, खुलकर कहें,
दुश्मनी को भूल, हम मिलकर रहें,
जहां भी हो, चैन-ओ-अमन की बात हो,
"दीप" तू भी लिखता जाए, इस बरस

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