Nov 5, 2008

पहला प्यार..

हर बार कोई जब मिलता है,
तेरी बात छेड़ता हैं मुझसे..
हर बार यही सोचता हूँ मैं, की...
चलो भूल कर देखे..

घर से निकलना मुश्किल हैं..
गलियों से गुज़ारना मुश्किल हैं,
वो खिड़की अब भी वहीँ है क्या?
ओह..!!  चलो भूल कर देखे...

कॉलेज के गेट पर जब भी कोई..
छुप-छुप के सीटी बजाता हैं..
वो मेरी याद दिलाता हैं..
उफ़...!! चलो भूल कर देखे...

कोई पलट-पलट के देखता है..
उंगली में लटे लपेटता हैं..
जी छूने को ललचाता है..
ना..!!  चलो भूल कर देखे..

इस रात को कैसे भूलूं मैं..
उस बात को कैसे भूलूं मैं..
जब चाँद को खूब जलाया था..
छोडो..!!  चलो भूल कर देखे..

ये दिल, आँखे, सांसे सब कुछ..
तेरे नाम से हरकत करती थी..
अब नाम-ओ-निशाँ नहीं है तेरा..
आह..!!  चलो भूल कर देखे.....

3 comments:

नीरज said...

It can be more creative .......
If u narrate relationship of two old friends.

Railway News Express said...

yes you are right neeraj... but i hv written this poem whn i was in 9th... and now i dont wanna change... coz emotions is attached... u knw.

Gaur's said...

ohhhhhhh u had written this poem in 9th std..gud yaar....
u r really creative by default..this is gr8

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