May 21, 2008

मानसून..


भभाकता सूरज, तेज़ हवाए...
सूखी धरती और मरते लोग...
सब कुछ तो ठीक था...हर साल यही तो होता हैं...

लेकिन स्कूल से लौटी छूटकी ने
थैला रखकर आँगन मे....
जाने कौनसा गीत गाने लगी...
जोर-ज़ोर से चिल्लाने लगी...
कि मानसून आने वाला हैं...
भाई मानसून आने वाला हैं....

सत्तर पार की संतो काकी
बैचेन होकर चारपाई से उतरी..
उछलती छुटकी का हाथ दबोचा
लकडी से डराकर कहने लगी..
"मुई पेट भरने को दाना नहीं..
पानी का भी ठिकाना नहीं
घर की इस बिगडी हालत मे
किसको न्यौता दे आई"
कि मानसून आने वाला हैं...
भाई मानसून आने वाला हैं....

छुटकी ने, काकी से, हाथ छुड़ाकर
भागी सरपट, दुम दबाकर..
गोद मे जाकर अपनी माँ को
हस-हसके समझा ने लगी
फिर दोनों उठकर बीच आँगन मे
झूम झूम के गाने लगी...
कि मानसून आने वाला हैं...
भाई मानसून आने वाला हैं....

लछमन चाचा घर पर आया
उसको भी सबने समझाया....
छप्पर को फ़िर नया बनाओ...
सूखे होज़ को साफ कराओ...
इस बार ये पानी बह ना जाए
छुटकी गौर से बात बताने लगी....
कि मानसून आने वाला हैं...
भाई मानसून आने वाला हैं....

अब धरती पर हरियाली होगी!
गायों की बात निराली होगी...
मिलेगा उनको ढेर सा चारा
फिर बदलेगा वक्त हमारा...
देख आसमा, लछमन चाचा...
मन ही मन मुस्काने लगे....
कि मानसून आने वाला हैं...
भाई मानसून आने वाला हैं....

अब संतो कि समझ मे आया....
दुआ में उसने हाथ उठाया
घर मे फिर खुशहाली लादे
राधा कि फिर से गोद भरादे....
गीले आँगन में खेलता मुन्ना
सोच-सोच, इतराने लगी....
बूढी आँख से छलका आंसू....
अब संतो काकी गाने लगी...
कि मानसून आने वाला हैं...
भाई मानसून आने वाला हैं...

* मैंने भी बचपन में अपने गाँव राजस्थान में थोडा सा वक़्त गुज़ारा था उस दौरान मुझे ये अहसास हुआ की वहाँ बरसात का क्या मोल हैं.. बस वही बाते मैंने आपके सामने कवीता के तौर पर रखी हैं.. उम्मीद हैं आपको ज़रूर पसंद आयी होगी.... plz comments..

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