Dec 15, 2007

तेरा ख्याल......


किसी कागज़ के टुकडे में दबोच कर..
मरीन ड्राइव के पानी में फेंका हुआ तेरा ख्याल....
आज राजस्थान कि तपती लू में...
ठिठुरता हुआ मेरे सामने खडा हैं......

कमज़ोर पड़ गये ख्याली बदन को देखकर ऐसा लगता हैं....
जैसे इस बेचारे को बुरे वक़्त कि मार पडी हैं....
वरना सूरत से तो अब भी ठीक-ठाक हैं .....

थके ख्याल को... नीम कि छाँव में... आराम मिलने ही वाला था....
कि कमब्खत बडकी ने फाटक खोल दी....

शाम का वक़्त हो चला....
गौरी गाय के साथ तेरा ख्याल भी,
 वक़्त के खूंटे से बांध चुका था......


मरीन ड्राइव एक ऐसी जगह जहाँ चले जाओ तो शायद तुम्हे किसी कि ज़रूरत नहीं होगी.... बाहें फैलाये खड़ी सागर कि लहरें और तुम..... ऐसी हालत में अगर कोई सुहाना ख्याल आ जाए तो... बस उसी ख्याल को मेरी कविता के इस पात्र ने अपने गाँव तक ज़िंदा रखा.... एक ख्याली कविता हैं.. बस पढो...!!!

2 comments:

Sarita Pareek said...

This poesm is great way to show how people is busy with their life that they don't have time to think at least.

स्वप्निल तिवारी said...

Awesome yar....
U r too gulzarish....

Saree nazme bahot umda hain...

Har ek lafz ek alaga khayal hai...

N yr marine drive..
Ab to dekhne ki tamanna ho rahee hai...
All da best...

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