Dec 21, 2007

एक नज्म.......


जो भी सामने हैं, ध्यान से पढ़ना...
ये कुछ पंक्तियाँ नहीं... मेरी रूह हैं....

ज़रा संभल कर... थोड़ी नाजुक हैं..
तुम्हे तन्हा पाकर आई हैं...

ध्यान से, ज़रा...आँखे खोलकर...
ये कविता अब शक्ल मे बदलेगी....
थोड़ा और साथ दोगे तो यकीनन...
तुम्हारा हाथ भी थामेगी...

तुम्हे कभी मरींन ड्राइव की सेर कराएगी...
तो कभी लोकल मे खीच ले जायेगी....

भीड़ के धक्के..
किसी पत्थर की ठोकर...
हर एक गली नुक्कड़ पर,
 तुम्हारे साथ बस यही होगी...

फकीर के कटोरे मे या किसी,
 स्कूली बच्चे के सपनो में...
किसी कपल की आंखो मे..
माँ की ममता में...

हर तरफ़...हर जगह,
सिर्फ़ मेरी कविता होंगी...
सुबह की ताज़गी से,
 शाम की रोशनाई तक...

तुम्हारे साथ जब घर लौटेगी....
तो तुम्हारी आंखों में कुछ वादे छोड़ जायेगी...
लौट के आने के वादे...

मैं कविता नही लिखता हूँ...
मैं दोस्त देता हूँ.... क्योंकि

"मेरी रूह तुम्हे कभी तन्हा नही होने देगी"

2 comments:

Sarita Pareek said...

"Ek Nazm" is a very very nice poem, full with feelings. If we read this poem by our heart then its really seems to be a great friend.

दर्शन कौर धनोय said...

"मेरी रूह तुम्हे कभी तन्हा नही होने देगी"

अच्छी नज्म है !लिखना क्यों छोड़ दिया ..

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