इक पूरा चाँद, पूनम कि रात निकला ...
सोचा कि खूब खिलेगा आज खुद कि सूरत पर...
सोचा कि खूब खिलेगा आज खुद कि सूरत पर...
मगर पागल था ...
ठंडी आग वाला चाँद ...
चेहरे पे दाग वाला चाँद
उसी रात को ही तो मिली थी, तुम भी मुझसे ....
बरसों पुराने इंतज़ार के साथ ....
शर्म से बोझल आंखो को,
कुछ कहने कि चाहत थी,
कम्पकपाते होंठो को देखकर....
भला कोई कैसे... कुछ न भूलता....
आवारा चाँद भी रात
खुद को भूल बैठा....
तूम जो आयी थी बरसों बाद ....
उस रात... छत पर....
रोज़ मत आना वरना....
पागल चाँद
खुद को बरबाद ना कर बैठे कहीं ....